Sunday, July 17, 2005

परिचय



जन्म- 27 सितम्बर 1972
शिक्षा- एम.ए.(संगीत); एम.ए.(अर्थशास्त्र); `संगीत प्रवीण' (प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद)
विशेष- दूरदर्शन एवं प्रतिष्ठित मंचों से संगीत(गायन)प्रदर्शन
संप्रति-`भैरवी संगीत एवं साहित्य कला मन्दिर' का होशंगाबाद(म.प्र.) में संचालन।
सम्पर्क-
भैरवी संगीत एवं साहित्य कला मन्दिर
राधाबल्लभ मन्दिर
सुभाष चौक नर्मदा मार्ग
होशंगाबाद(म.प्र.)461001
मोबा.- 9893087788

ग़ज़लें

[3]
कौन कहता है वो अकेली है
आस जीने की जब सहेली है

भाग्य बिगड़ा है वक्त के हाथों
मुफ्त़ बदनाम ये हथेली है

उम्र गुजरी, गुज़र गईं सदियाँ
ज़िन्दगी आज तक पहेली है

चाँद मांगा ग़रीब बच्चे ने
चाँदनी फिर ये आज मैली है

मन की पीड़ा यूँ रोज़ सजती है
जैसे दुल्हन कोई नवेली है

ज़िन्दगी की चुभन है कांटों सी
न ये चम्पा है न चमेली है

मैंने देखा है खंड़र में 'श्वेता'
साँस लेती सी इक हवेली है
***


[4]

फ़ैसला ये ज़रा सा मुश्किल है
गर्म मौसम है या मिरा दिल है

हद हुआ करती है समंदर की
आँसुओं का न कोई साहिल है

उससे मिलना भी उससे बचना भी
वो ही हाफ़िज है वो ही क़ातिल है

अहले–दिल चल पड़े तो राह बनी
और जहाँ रूक गए वो मंजिल है

ख़ुद ही वो शम्मा ख़ुद ही परवाना
उसकी महफ़िल अजीब महफ़िल है

दास्ताने–हयात थी आधी
उससे मिलकर हुई मुकम्मिल है

सुबह आएगी ताज़ा–दम होके
रात 'श्वेता' ये माना बोझिल है
***
-श्वेता गोस्वामी

ग़ज़लें

[1]
तू नहीं है तेरी तलाश तो है
ज़िन्दगानी में कोई आस तो है

न मिली गर मुझे शराब तो क्या
मेरे हिस्से में आई प्यास तो है

उसका गम़ बाँटते बना न अगर
उसके गम़ में ये दिल उदास तो है

दूरियां दूरियां कहाँ है अब
वो ख़यालों के आस-पास तो है

लाख पत्थर का ज़माना हो मगर
दिल धड़कने का भी अहसास तो है

लड़खड़ाती जुबां सही लेकिन
मेरा लहजा ये बेहिरास तो है

प्यार उसका है संदली `श्वेता'
महकी-महकी ये मेरी साँस तो है
***


[2]
अपने वादे को निभाएं कैसे
आप को दिल से भुलाएं कैसे

आग ही आग सबके ज़हनों में
अपना घर इससे बचाएँ कैसे

अश्क जो दिल में छुपा रक्खे हैं
उनको आँखों से बहाएँ कैसे

जिसको देखो वो गम़ज़दा है यहाँ
अपना अफ़साना सुनाएँ कैसे

हादसों के शहर में ऐ 'श्वेता'
माँ दे बच्चे को दुआएँ कैसे
***


-श्वेता गोस्वमी

कविताएँ

विचारवान लोग


सभा विसर्जित हो गई
सब चले गए
अपने-अपने ठौर
रह गई धूल
पाँवों झड़ी हुई
उन विचारों के साथ
जो धूल में मिला कर
छोड़ गए हैं
विचारवान लोग।
***

जीवन
एक समय
जब सभी ने
निष्कासित कर दिया था मुझे
अपने–अपने जीवन–प्रसंगों से
मैंने स्वंय से
पूछा था एक सवाल
क्या जीवन
इतने से हो जाता है समाप्त ?
ज़बाव में
मैं जिंदा हूँ अभी तक।
***
वक्त़


मंदिर कलश पर
परिंदों को जोड़े में बैठे देखना
होता है शुभ
जब ये समझाया था तुमने
तब मैंने कहाँ सोचा था
वक्त़ नहीं लगता
इंसान को
परिंदा बनकर उड़ जाने में।
***
संभावना
उसके माथे पर बिंदिया दीपक सी
झिलमिलाई और ओठों पर गहराई
स्निग्ध मुस्कान की नदी
डूब गईं जिसमें
असंख्य नयनों की कश्तियाँ
चँद उबरने वाली वे थीं
जिनकी पतवार अपलक
ताक रही थी बिंदिया–दीप
बचना है तो
पलक नहीं झपकाना है
टूटती संभावना को
ऐसे ही पाना है।
***
कविता

अन्तर की गहराई आँकी नहीं जाती
कविता वह है
जो किसी पैमाने से नापी नहीं जाती
माँ के ह्रदय की, आवाज़ है कविता
शायर के कहने का अंदाज है कविता
इतिहास का आज है कविता
प्रेम का एहसास है कविता
विरह में पतझड़,
मिलन में मधुमास है कविता
वसुधा का वसन्त है कविता
अम्बर सी अनन्त है कविता
हलघर की हरी फसल है कविता
संगीत का अनहद नाद है कविता
कवियों का तख्त़ो–ताज है कविता
आप अगर सुन लें तो
मेरी आवाज़ है कविता
***

-श्वेता गोस्वामी

प्रतिक्रिया

नर्मदातीरे के लिए gg