Sunday, July 17, 2005

ग़ज़लें

[1]
तू नहीं है तेरी तलाश तो है
ज़िन्दगानी में कोई आस तो है

न मिली गर मुझे शराब तो क्या
मेरे हिस्से में आई प्यास तो है

उसका गम़ बाँटते बना न अगर
उसके गम़ में ये दिल उदास तो है

दूरियां दूरियां कहाँ है अब
वो ख़यालों के आस-पास तो है

लाख पत्थर का ज़माना हो मगर
दिल धड़कने का भी अहसास तो है

लड़खड़ाती जुबां सही लेकिन
मेरा लहजा ये बेहिरास तो है

प्यार उसका है संदली `श्वेता'
महकी-महकी ये मेरी साँस तो है
***


[2]
अपने वादे को निभाएं कैसे
आप को दिल से भुलाएं कैसे

आग ही आग सबके ज़हनों में
अपना घर इससे बचाएँ कैसे

अश्क जो दिल में छुपा रक्खे हैं
उनको आँखों से बहाएँ कैसे

जिसको देखो वो गम़ज़दा है यहाँ
अपना अफ़साना सुनाएँ कैसे

हादसों के शहर में ऐ 'श्वेता'
माँ दे बच्चे को दुआएँ कैसे
***


-श्वेता गोस्वमी

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